Tuesday, August 2, 2011

सियाह रात - १


सियाह रात - १ 

सियाह रात के साए में,
चरागों से थे तुम चमके 
मेरे जीवन की राहों में ,
ख़्वाबों का जहां बनके

तुम्हे ही देखते थे हम, 
जो राहों में अँधेरा हो 
अँधेरी राह से चलकर ,
 उजालों तक थे हम पहुंचे 

तुझे मिलने की ख्वाहिश थी
यह हसरत रह गई दिल में,
मेरे अश्कों के दर्पण में में
तेरा ही नज़ारा हो.

मेरी आहों में आंसू हैं,
यह गम हैं तेरी उल्फ़त के
तेरे ही नूर की बारिश में 
अब मुझको नहाने दे.
                                     ____ संकल्प सक्सेना 

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