Saturday, August 6, 2011

घर



घर 

दूर घर से अपने, रह रहा हूँ अब मैं,
घर शब्द का मोल, समझ रहा हूँ अब मैं
दूर यहाँ परदेस में, तनहा जी रहा हूँ अब में
घर ही है जन्नत, समझ रहा हूँ अब मैं .


वो पापा की डांट, मम्मी का दुलार
भाई की शरारत, दीदी का प्यार
इन सब के लिए तड़प रहा हूँ अब मैं
घर शब्द का मोल, समझ रहा हूँ अब मैं .


मेरे माता पिता को नमन है शत-शत
त्याग से उनके पहचान, अपनी
बना रहा हूँ अब मैं
अरमानों पे उनके खरा उतरने की ,
जी तोड़ कोशिश कर रहा हूँ अब मैं
घर ही है जन्नत, समझ रहा हूँ अब मैं.


परदेस मैं हूँ, यादों को संजोये
घर जाने के मौके को, तरस रहा हूँ अब मैं
भाई की शरारत, दीदी का प्यार,
माँ बाबा के दीदार को तरस गया हूँ अब मैं,
घर शब्द का मोल, समझ रहा हूँ अब मैं
घर ही है जन्नत, समझ रहा हूँ अब मैं .
____ संकल्प सक्सेना.

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