Saturday, August 20, 2011

शायरी


शायरी 

न कर शायरी को बदनाम 
हुस्न का नाम देकर
यह तो ख़ुदा का मुक़ाम है.

जिस्म फ़रोशी नहीं शायरी 
यह तो रूह का पयाम है.

दिल्लगी नहीं शायरी 
जो किसी हुस्न पर बर्बाद करें,
यह  तो एक शमा है 
जो उस नूर का पयाम है.

हुस्न पर शेर कसा
बदनाम किया शायरी को,
सच्चा शायर है वही
जो हुस्न की राह पर
अपना सर्वस्व क़ुर्बान करे
शायरी नाख़ुदा की,
शायर को भवसागर से पार करे.

शायरी है सजदा करना,
नूर के दरबार मैं ,
उस नशेमन की ललक है,
तेरे इस संसार में.

शायरी न  हुस्न है,
शायरी न है शबाब,
शायरी है बज़्म-ए-उल्फ़त,
शायरी से कायनात .
                               ___संकल्प सक्सेना 

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