सियाह रात - २
सियाह रात के साए में ,
जलती हुई शमा के बीच
ग़ज़लों के कैकशां में
एक ग़ज़ल है मेरी बाहों में.
दिल में जज़्बात तूफ़ान भरे
आह में सुलगते अरमान मेरे
टकराती मंद हवाओं में
देखो जाम से जाम मिले.
मदहोशी का यह आलम है
बारिश में भी एक सुलगन है,
बुझी हुई शमा के बीच
चरम तक पहुंचा प्रेम का बीज.
____संकल्प सक्सेना
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