Saturday, August 20, 2011



कविता

क़लम उदास है
लिखने की प्यास है ,
अब किस्से कहूँ मैं जाके
मौसिक़ी उदास है.

मेरे प्रेरणा सरोवर 
तुम दूर क्यूँ हो बैठे,
रोती है क़लम मेरी,
मुक़तक उदास हैं.

जब लिखते हैं पंक्ति,
रो पड़ती है पांति,
सिसकती है क़लम,
कवि की जुबानी.

ख़त्म होगी स्याही 
रूठेगी रुबाई,
खोजेगी दुनिया,
ख़ुदाई दुहाई .
                  ____संकल्प सक्सेना .

2 comments:

  1. @ The warrior: U can add me on Facebook...
    Thanks for ur precious comment...First comment on my Blog...m happy

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