कविता
क़लम उदास है
लिखने की प्यास है ,
अब किस्से कहूँ मैं जाके
मौसिक़ी उदास है.
मेरे प्रेरणा सरोवर
तुम दूर क्यूँ हो बैठे,
रोती है क़लम मेरी,
मुक़तक उदास हैं.
जब लिखते हैं पंक्ति,
रो पड़ती है पांति,
सिसकती है क़लम,
कवि की जुबानी.
ख़त्म होगी स्याही
रूठेगी रुबाई,
खोजेगी दुनिया,
ख़ुदाई दुहाई .
____संकल्प सक्सेना .
wah.. kya khoob kahi hai dost!
ReplyDelete@ The warrior: U can add me on Facebook...
ReplyDeleteThanks for ur precious comment...First comment on my Blog...m happy