Sunday, August 14, 2011

रण भूमि


रण भूमि

यह कविता हमारी  थल सेना, वायु सेना,नौ सेना  और स्वाधीनता संग्राम के सभी शहीदों  को समर्पित है.
I AM PROUD OF OUR INDIAN DEFENCE FORCES.

बरस रहे थे अंगारे,चल रही थीं गोलियां,
फिर भी अपना सीना ताने,
 बढ़ रही थी टोलियाँ.

वहां से बरसे थे अंगारे,
यहाँ से बरसे थे शोले,
घमासान था बड़ा ग़ज़ब का
काँप उठे थे नभ तारे.

कहीं डटे थे भगत सिंह,
तो कहीं डटे थे अर्जुन वीर,
धरती मान की लाज बचाने, 
उतरे रण मैं अभिमन्यु वीर.

लहू था वीर सपूतों का,
अभिषेक था भारत माता का,
स्वतंत्रता की देवी ने,
मांगा बलिदान सपूतों का.

बरक चढह के मुस्कानों की,
कुर्बान कर दिए पाने शीश,
नाच उठी थी मौत की देवी,
घरों से गूंजी थी अब चीख़.

बहनों ने खोये अपने भाई,
माँओं ने गंवाए अपने लाल,
क्रंदन के स्वरों के बीच,
स्वतंत्रता थी शर्मसार.

जिए नहीं हो अमर हुए हो,
कभी न भूलेंगे तुमको ,
गाथाओं की संजीवनी से,
नवजीवन देंगे तुमको.

                                ___ संकल्प सक्सेना 



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