जीवन
तनहा सी शाम है
चुभता हुआ सन्नाटा है,
सब कुछ है पास में,
फिर भी नमी है आँख में।
यादों का बवंडर है,
कहीं सुरूर, कहीं बेचैनी का मंज़र है।
जीवन इक अगन है,
कहीं जलन, कहीं सुलगन है।
आँखों में है कई अरमां
कहीं कोशिश,
कहीं मुक़ाम हैं।
क्या कमाएगा?
क्या लेजएगा इंसान?
कहीं राख़,
कहीं मिट्टी है ।
__ संकल्प सक्सेना
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