Saturday, September 24, 2011

कविता


कविता 

धड़कने तेज होने लगती हैं
मन खोने लगता है
जब नाम कभी तुम्हारा लब पे आता है,
प्रेम के समंदर में मन गोते लगता है
जब नाम कभी तुम्हारा, लब पे आता है 

कभी संगीत सहलाता है
कहीं ग़ज़ल बनती है
कभी अनाहद नाद
मेरे दिल को भाता है
जब नाम कभी तुम्हारा, लब पे आता है 

मैं भी तो तुम्हारी राह का पथिक हूँ
कहीं राह न भटकूँ,
प्रेम के दीप जलदो
सदा रहूँगा चरणों में
बस एक बार आवाज़ लगादो 
                                   ___ संकल्प सक्सेना 


                                     

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