वृक्ष और बादल
बादल कभी बरसे नहीं
प्यासे इन्सां के लिया
ये तो बरसे हैं उनके लिए
जो झुलसे सबकी छाँव के लिए ।
क्या किया मानव ने उनके लिए
जले जो सबकी छाँव के लिए
क्या जिया कभी है ये ख़ुद भी
और के जीवन प्रान के लिए ।
जल जल के तन है हरा किया
महके पवन, वसुधा के लिए
मानव ने चलाई विष वायु
अपने ही निज स्वार्थ के लिए ।
इसलिए नहीं बरसे जलधर
जहां इंसां बस्ती बनता है
ये तो बरसे उस तरु के लिए
जो जला है प्यासी माँ के लिए ।
___ संकल्प सक्सेना ।
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