हमारे दिल अज़ीज़ ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह जी को श्रद्धांजलि
एक बरस पहले
एक बरस पहले
रोई थीं ग़ज़लें
सिसकी थीं नज़्में
मौसिक़ी का फ़रिश्ता रुला जा रहा था ।
ग़म था छाया फ़िज़ां में
छलके मयक़दे भी
पीर से दिल का अम्बर फटा जा रहा था
मौसिक़ी का फ़रिश्ता रुला जा रहा था ।
दिल कोने में छिपकर
पीर ग़ालिब की छलकी
मीर के आंसुओं सा बहा जा रहा था
मौसिक़ी का फ़रिश्ता रुला जा रहा था ।
आज भी गूंजती हैं
फ़िज़ा में सदायें
हर्फ़ आते हैं लब पे, जैसे तेरी दुआएं
'लवि' यादों में तेरी बहा जा रहा था
मौसिक़ी का फ़रिश्ता चला जा रहा था
मौसिक़ी का फ़रिश्ता रुला जा रहा था ।
___ संकल्प सक्सेना 'लवि' ।