रूठी क़लम
क़लम मेरी क्यों सो रही तुम?
क्या तुम्हें एहसास है ?
क्या है बीती इस ह्रदय पे?
क्या मेरे जज़्बात हैं ?
क्यों नहीं तुम जागती हो?
तुम हो ख़ुद प्राची किरण
तुम हो वो स्वछन्द चिड़िया
जिसको ना बांधे गगन
क्यों है ये आलस तुम्हें ?
क्यों सोयी हो शव सी कहो?
हंस रहे हैं लोग मुझपे
दम तोड़ता 'लवि' अब जगो
ग़र नहीं तुम में हो रंग
मेरे ग़म से लेलो रंग
मान जाओ मेरी प्रियवर
फिर न दिखें रूठे बलम ।
__ संकल्प सक्सेना 'लवि' ।
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