Wednesday, May 15, 2013


तन्हाई

बसंती फूल झड़  गए
पौधों की टहनियां प्यासी हैं 
कांटे बिखरे हैं राहों में 
चलने की मेरी बारी है।

राहों में जलते पाँव मेरे
गर्मी में सुलगते घाव मेरे
नहीं दूर तलक कोई मंजिल
क्रंदन स्वर गूंजे राहों में।

मेरे दिलके हर इक कोने में
तन्हाई डाले है डेरा
रिस्ता  है खून दिल से अब
साँसों का छोटे है फेरा।

'लवि' समय की वीरां राहों में
चिता जली अरमानों की
धुंआ हुईं सब यादें हैं
अस्थि विसर्जित आहों की।
                                                                        __ संकल्प सक्सेना 'लवि'






Wednesday, May 1, 2013

टूटे सपने


टूटे सपने

कितने अरमां  थे
कितने सपने थे
शीशे से नाज़ुक
फूल से कोमल

एक झटका लगा
बिखर गया कांच
चूर हुए सपने
घायल हुए पाँव

आँखों में  आंसू
टूटे सपनों के घाव
चिल चिलाती जलन
थके हुए पाँव

फिर भी चल रहा है 'लवि'
राहों पे अपनी 
चुभे हुए कांच हैं  
लहु  लुहान हैं रास्ते। 
                                                   ____ संकल्प सक्सेना 'लवि'