Monday, July 22, 2013





जननी को ही जीने के अधिकार से वंचित रखता है 

देवी की पूजा करता परिवार से वंचित रखता है।

ये समाज है इसका ढांचा, क्रूरों के हाथों सौंप दिया 
कहीं नन्हे भ्रूण को मार दिया, कहीं चिता की भेट चढ़ा दिया।

सर झुका दिया भारत माँ का, संस्कृति माता भी रो पड़ीं 
उनकी संतानों ने मिलकर, कलियों का जीवन नौंच लिया।

ज़रा आँख उठाकर देखो तुम, पश्चिम की आँखों में झांको 
सीखे थे जो जीना हमसे, कुछ सबक तो उनसे ले लो तुम।

गर नहीं जो संभले वक़्त रहे तो बैर प्रकृति से होगा 
तरसोगे माता, बहनों को , कोप बड़ा भीषण होगा।
                                                                ___संकल्प सक्सेना 'लवि' 

Thursday, July 4, 2013

जेब

न देखना कभी जेब किसीकी 
कहीं रूपए की नज़र न लग जाए।
                                                 ___ संकल्प सक्सेना 'लवि'