Sunday, September 8, 2013

लब -ए-ग़ज़ल
 
 लब -ए- ग़ुलाब ढूंढ़ते हैं अपना सहारा
अक़्स चूमते हैं, कहें अपना सहारा।।

गलीचा बन महक उठा है, हुस्न तुम्हारा
खुशबू चमन में ढूंढती है, अपना सहारा।।

वो शोख हैं, हसीन हैं, खिलते गुलाब हैं
हम ख़ार ही सही, मगर हैं उनका सहारा।।

ज़ीनत हैं अपने बाग़ की, माली के चश्म ओ नूर
बाहों में भर के लाऊंगा मैं अपना सहारा।।

झुकते हुए चराग हैं, जलवा ए शौक़ है
सजदे में ख़ुमारी है, यही अपना सहारा।।

हुस्न की छवि में कहाँ खो गए 'मुरीद'
हस्ति ए ग़म , ढूंढते हैं अपना सहारा।।
                                                                               __ संकल्प सक्सेना 'मुरीद'

Friday, September 6, 2013


सैनिक 

जो त्याग शौर्य की मूरत हैं 
वो वीर हमारे सैनिक हैं 
जिन्हें देख के दुश्मन थर्राता 
वो वीर हमारे सैनिक हैं।

त्यागे थे अपने घर उनने 
त्यागे थे सब सुख जीवन के 
वो चले थे राह हिमालय की 
ज्यों संत अवतरित भू तल पे।

छोटा सा है जीवन इनका 
और कर्म बड़े हैं जीवन से 
लोगों के दिल में  घर करते 
ज्यों संत पुरुष हों युग युग से।

हवन  कुंड है रण इनका 
हों यज्ञ देश की रक्षा के 
समिधा में अर्पित तनमन है 
ज्यों ऋषि हमारे इस युग के।

त्यगि, तपस्वी, संत, ऋषि 
देखा है सबको वीरों में 
सब शीश झुकाते रब आगे 
यह शीश चढ़ें 'माँ' चरणों में।
                            ___ संकल्प सक्सेना 'लवि'। 



सायों की रहगुज़र

ता उम्र का सफ़र, सायों की रहगुज़र 
नयनों की राह से, अश्क़ों की रहगुज़र।।

बचपन से जवानी, सायों की ज़ुबानी 
ये खेल समय का, ख़्वाबों की रहगुज़र।।

साँसों में महक है, आँखों में तरन्नुम 
ये दौर-ए-जवानी, बाहों की रहगुज़र।।

जो रूठ गए हैं, वो आ नहीं सकते 
बिछड़े हैं जो साक़ी, जामों की रहगुज़र।।

आहों के सहारे, हर्फों की रहगुज़र
साये में क़लम के, ग़ज़लों की रहगुज़र।।
                                                __ संकल्प सक्सेना 'लवि'।