एहसास-ए- मोहब्बत
एक सतरंगी फ़ुहार थी, बहती मन कि बयार थी
खोती थीं दिल कि धड़कने, आँखों से रिस्ती धार थी।
खिलती कलियाँ जब बाग़ में , पीहू कोयल कि पुकार थी
भंवरों कि गुंजन, फिर वही, गीतों कि बरसती धार थी।
क्यों सागर मरुथल हो रहा, नदिया कि कैसी चाल थी
नयनों को झुका के आ गई, धड़कन सागर कि निसार थी।
मेरी पहली तहरीर थी, 'वारिस' की जैसे हीर थी
गीतों कि धुन में ढल गई, सरगम थी या वो प्यार थी।
फिर रफ्ता रफ्ता खो गयी, ज्यों धुंद सुबह के प्यार की
ख़ुद में ही खोते हैं 'मुरीद', यादों कि इक झनकार थी।
__ संकल्प सक्सेना 'मुरीद'।
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