छवि
भोर सी तुम मेरी प्रियतम
तिमिर था जीवन मेरा
धीरे धीरे तुम जो आईं
सुबह का हर रंग चढ़ा।
सूरज नज़र आने से पहले
पंछी-हृदय कलरव करे
मेहके हुए झोंके पवन के
सुरभित मेरे मन को करें।
आहट तुम्हारी थी मधुर
मन मेरा मचला इस क़दर
उषा किरण के सामने
मैं हो रहा था बेख़बर।
कुछ देर में सूरज उगा
'छवि' मेरे मन में बस गई थी
बिखरे थे यूं रंगीं नज़ारे
वो हमारी हो गई थी।
__संकल्प सक्सेना 'मुरीद'।
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