Monday, June 1, 2015



मेरी ज़िन्दगी के इस बेशक़ीमती पल ने आज गीत की शक़्ल इख़्तियार की है। आप सभी से मुख़ातिब है।
 
वो मेरी हुई जा रही थी
 
वो मेरी हुई जा रही थी
सब कुछ छोड़, चली आ रही थी।
 
सालों का सफ़र, अपनों का नगर
वो गालियां, रुआंसी हुई जा रही थीं
सब कुछ छोड़, चली आ रही थी।
 
मेरी ज़िन्दगी का, वो प्यार सा दिन था
मेरे इस सफ़र का, सितारा भी संग था
फिर भी, चमन में नमी छा रही थी
अश्क़ों को मेरे, वो तड़पा रही थी
सब कुछ छोड़, चली आ रही थी।
 
कभी उसको देखूं, तो ये सोचता हूँ
नज़र की किंवाड़ों, पे क्या देखता हूँ
जो ठहरे पलक पे, वो उसके हैं अपने
छलकते हैं, आँखों से, यादों के लम्हें
तज कर, सज कर चली आ रही थी।
 
वो मेरी हुई जा रही थी
सब कुछ छोड़, चली आ रही थी।
                                                   __संकल्प सक्सेना 'मुरीद'।


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