Tuesday, August 9, 2016


अर्धांगनी


मुझको मेरी अर्धांगनी स्वीकार कर 
भटका हुआ था मैं, मुझे स्वीकार कर 
मेरे ह्रदय की आग अब तू पार कर 
मेरे नयन की राह अब तू पार कर। 

मेरे हर इक खोए हुए एह्सास सुन 
जो बस रही थी मुझ में, वो हर श्वास सुन 
तुझको मिलेगी राह, मेरी आह सुन। 

फिर बह चलेंगी दिल की सब गहराइयाँ 
मेरे क़लम की वो करुण अंगड़ाइयाँ 
बजने लगेंगी फिर मधुर शहनाइयाँ

तू बूँद बनकर हर नदी को पार कर 
मेरे ह्रदय की आग अब तू पार कर 
मेरे नयन की राह अब तू पार कर
भटका हुआ था मैं, मुझे स्वीकार कर
मुझको मेरी अर्धांगनी स्वीकार कर। 
                                  __संकल्प सक्सेना 'मुरीद'।

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