नानाजी
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मेरे जीवन, मेरे लेखन के अभिन्न अंग,मेरे मार्गदर्शक ......उन्ही को समर्पित हैं ये जज़्बात जिन्हें शब्दों में नहीं बांधा जा सकता।
आँखें नम हैं।
मायूस है, उदास है,
ये कैसी अनमिट प्यास है
सब कुछ है पास मगर
कहाँ गए जज़्बात हैं।
क़लम है, स्याही, बूँद नहीं
दर्द है, धड़कन नहीं
पथराई सी आँखें हैं
बेहता कोई जुनूं नहीं
आख़िर कब तक !
आख़िर कब तक ये अफ़साने
बनते ही घुट जाएंगे
मेरे भीतर खिलते खिलते
फूल यूँही मुरझाएंगे।
जिनकी साँसें, जिनकी सीरत
मुझ में प्यास जगाती थीं
आज नहीं हैं पास मेरे वो
गीत मेरे क्या गाएंगे ?
आँच नहीं है उन सांसों की
दर्द कहाँ से लाएंगे।
अब तो बस यादों के दर्पण
'मुरीद' समझ रहे हैं दर्शन
पुंज प्रकाश तुम थे हमारे
मेरे गीत तुम्ही को तर्पण।
__संकल्प सक्सेना 'मुरीद'।
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